Monday, June 8, 2015

उ. प्र. में पुत्री का सम्पत्ति में अधिकार

उ. प्र. में पुत्री का सम्पत्ति में अधिकार    उत्तर प्रदेश में पुत्रियों को संपत्ति  कितना अधिकार है यह जानने के लिए संपत्ति का प्रकार का जानना होगा। एक वह संपत्ति जो कृषि भूमी है इसमे पुत्रियों को अधिकार तो दिया गया है किन्तु उनको तीसरे और चौथे स्थान पर रखा गया है (उ. प्र. जमींदारी वि अधि. की धरा १७१ व अब उ. प्र. राजस्व संहिता की धरा १०८ ) इसका अर्थ है कि यदि विधवा और पुत्र या पौत्र है तो पुत्री को कोई हिस्सा नहीं मिलेगा यदि उक्त नहीं है तभी पुत्री को हिस्सा मिलेगा उसमे भी यदि अविवाहित पुत्री है तो उसे मिलेगा क्योकि विवाहित पुत्री चौथे स्थान पर है। यह नियम सभी नागरिक पर लागु है चाहे वह किसी धर्म का हो। 
दूसरा वह संपत्ति जो कृषि भूमि नहीं है इसका निस्तारण व्यक्तिगत कानून के अनुसार होगा। हिन्दू  विधि  में २००५ के संसोधन के बाद पुत्री को भी संयुक्त हिन्दू परिवार में जन्मतः सहदायिक माना जाता है और उसका हिस्सा पुत्र के बराबर मिलेगा। 
मुस्लिम विधि में चाहे सुन्नी हो या शिया पुत्री का हिस्सा तभी है जब पुत्र नहीं है यदि एक पुत्री है तो १/२ और एक से अधिक है तो सबका मिलाकर २/३ और पुत्र होने पर पुत्री अवशिष्ट हो जाती है और यदि सबके हिस्से के बाद कुछ अवशिष्ट है तो उसमे पुत्री अन्य के साथ प्राप्त करेगी। 
उपरोक्त सभी नियम निर्वसीयती के मामले में लागु होगा यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन कल में वसीयत करके मरता है तो उसके संपत्ति का निस्तारण वसीयत के अनुसार होगा और कृषि भूमि को छोड़ कर वसीयत के सम्बन्ध में धार्मिक विधि लागु होगा अर्थात मुस्लिम केवल अपने १/३ भाग का वसीयत कर सकता है ।

Saturday, June 6, 2015

क्या किसी विद्यालय के संरक्षक सोसाइटी के किसी सदस्य द्वारा विद्यालय में किसी के मृतक आश्रित रूप में हुई नियुक्ति को चुनौती देने का अधिकार है

       क्या किसी  विद्यालय के संरक्षक सोसाइटी के किसी सदस्य द्वारा विद्यालय में किसी के मृतक आश्रित रूप में हुई नियुक्ति को चुनौती देने का अधिकार है इस प्रश्न का उत्तर माननीय उच्च न्यायलय इलाहबाद ने विशेष अपील (डिफेक्टिव ) संख्या १७३ वर्ष २०१५  (विमल कुमार शर्मा  बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य ) में पारित अपने आदेश दिनांक २४.०२.२०१५ के द्वारा दिया है।  माननीय न्यायालय ने उपरोक्त्त वाद में अपना निर्णय देते हुए कहा है कि नियुक्ति प्राधिकारी विद्यालय की  प्रबंध समिति है और यदि नियुक्ति के समय विद्यालय में प्रबंध संचालक नियुक्त थे और उन्होंने नियुक्ति किया है तो काफी समय बाद संरक्षक सोसाइटी के किसी सदस्य द्वारा उस नियुक्ति को चुनौती देने का अधिकार नहीं है और ऐसे  सदस्य द्वारा दाखिल रिट याचिका ग्राहय नहीं  है और उस पर विचार नहीं किया जा सकता है और केवल उसे ख़ारिज करने का आदेश होना चाहिए।

Friday, June 5, 2015

वसीयत का निष्पादन यदि स्वीकार कर लिया गया है तो क्या उसके गवाहों द्वारा साबित करना आवश्यक है अथवा नहीं

वसीयत का निष्पादन यदि स्वीकार कर लिया गया है तो क्या उसके गवाहों द्वारा साबित करना आवश्यक है अथवा नहीं इस प्रशन का उत्तर माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका संख्या ५६४ वर्ष २०१४ श्रीमती कमला देवी वनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य में दिया है माननीय न्यायालय ने धरा ६८ साक्ष्य अधिनियम की ब्याख्या करते हुए कहा है की यदि अन्य कोई दस्तावेजजो पंजीकृत  है तथा जिसका निष्पादन स्वीकार कर लिया गया है उसे उसके अनुप्रमाणिक साक्षी द्वारा  सावित किया जाना आवश्यक नहीं है किन्तु यदि वह दस्तावेज वसीयत है तो उसे सावित किया जान आवश्यक है और मात्र उसका निष्पादन स्वीकार कर लेने से उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है और उसके आधार पर किसी को कोई अधिकार नहीं प्राप्त होगा ऐसा ही विचार माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने भापुर सिंह बनाम शमशेर सिंह A I R  2009 एस. सी 1766 के वाढ में दिया है और कहा कि  वसीयत के सम्बन्ध में धारा ६८  साक्ष्य अधिनियम के प्रावधान  के अनुसार कम से कम एक गवाह द्वारा साबित करने के नियम से छुट  नहीं दिया जा सकता है , जिसे माननीय उच्च न्यायलय ने उपरोक्त वाढ में  लागु माना  है